मदर्स डे स्पेशल 12-15 नेत्रहीन बच्चों की ज्योति बन कर रही भोजन पालन

मदर्स डे स्पेशल 12-15 नेत्रहीन बच्चों की ज्योति बन कर रही भोजन पालन

 

 

जिला मुख्यालय मनेन्द्रगढ़ के आमाखेरवा में नेत्रहीन विद्यालय संचलित है। यहां मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ के तीन दर्जन से ज्यादा बच्चे रहकर पढ़ाई करते है। घर से माता पिता से दूर रह कर यहां नेत्रहीन बच्चे पढ़ते है। यहां काम करने वाली गीता इन बच्चों को कभी एहसास ही नहीं होने देती की वे अपनी माँ से दूर है। बीते 15 सालों से नेत्रहीन विद्यालय में काम करने वाली 53 वर्षीय गीता नेत्रहीन विद्यालयों के बच्चों की अब जगत माँ का दर्जा प्राप्त कर नेत्रहीन बच्चों की ज्योति बन कर पालन कर रही हो। नेत्रहीन विद्यालय में अध्ययनरत बच्चे भी गीता को गीता माँ कह कर पुकारते है। गीता को भी इन बच्चों की सेवा करने किसी पुण्य कार्य से कम नहीं लगता। गीता कहती भी है मैं इनको नेत्रहीन बच्चे समझती ही नहीं हूं। मैं अपने बच्चे जैसा मानकर इन बच्चों की सेवा करती हूं। गीता रजक का कहना है मेरे खुद 2 बच्चे है एक बेटी और एक बेटा। जैसे मैं अपने बच्चों को पालती हु वैसे इन बच्चों को पालती हु। गीता बताती है इन बच्चों की देखरेख कर मुझे जो पैसे नेत्रहीन विद्यालय द्वारा दिये जाते है उन पैसे से मैं अपने बच्चों का लालन पालन करती हूं आपको बता दे कि नेत्रहीन विद्यालय के बच्चों की देखभाल करने वाली गीता खुद तो बस 5 वी पास है, लेकिन इन नेत्रहीन बच्चों के अध्ययन कार्य मे भी गीता सहयोग करती है। नेत्रहीन विद्यालय के बच्चे जब स्टडी रूम में पढ़ाई करते है तो किताबे निकालने के अलावा। स्टडी रूम के साफ सफाई को लेकर भी संजीदा है। इसके अलावा पढ़ाई के दौरान बच्चों को प्यास लगने पर पानी लाकर देना, चाय बनाना गीता की दिनचर्या में शामिल है गीता रजक खुद तीन बच्चों की माँ है। एक बेटे की मौत बीमारी से हो गई। दो बच्चे अब है। एक बेटी और बेटा। 10 साल पहले पति की बीमारी से मौत के बाद गीता हार नहीं मानी और बच्चों को बड़ा कर उन्हें अपने पैरों पर खड़ा किया। गीता का बेटा धोबी का काम करता है। वही एक बेटी है जिसकी शादी गीता ने अपने दम पर की है। गीता के बेटे और बेटी की शादी हो चुकी है। और अब ज्यादातर समय गीता रजक नेत्रहीन विद्यालय में ही गुजारती है नेत्रहीन विद्यालय के व्यवस्थापक राकेश गुप्ता ने बताया कि गीता रजक पिछले 15 सालों से आया का दायित्व निभा रही है। राकेश बताते है कि विद्यालय के छोटे बच्चों को नहलाने तक का काम यह करती है। इसके अलावा नेत्रहीन विद्यालय के छात्रों के कपड़े धोना। खाना बनाकर खिलाना। बर्तन धोना। छात्रों के बेड लगाने के अलावा कई कार्य करती है। विद्यालय में 10 घण्टे काम करने के बाद भी जब कभी गीता की जरूरत होती है उसे बुला लिया जाता है और वह हर कार्य करती है। नेत्रहीन विद्यालय के बच्चों की जब तबियत खराब होती है तो उन्हें अस्पताल ले जाने तक से दवाई लाने और दवाई समय पर खिलाने का काम भी गीता के जिम्मे है

Apni Khabar24x7
Author: Apni Khabar24x7

Leave a Comment

और पढ़ें

Ai / Market My Stique Ai